Monday, 1 October 2007

कुछ लम्हे

ईर्द गिर्द मेरे बिखरी हुई तेरी बाते

और कुछ सिमटे हुए पल

और कुछ बिखरी हुई सी मै...

एक बिखरे हुए पल में

खुद को उस पल से जोडते हुए...

हर एक लम्हे में तुझ को तलाशती हुइ मै!!!!

2 comments:

HAREKRISHNAJI said...

wah kya baat hai

Anonymous said...

व्वा... काव्य आवडलं!
इज्तिराब??? म्हणजे???